उमर के पूरे आँगन में
बिखरी बेचैनियों को
पकड़ कैसे सकोगे
बहुत फिसलन भरे होते हैं
बेचैनियों के हाथ
पाँव होते हैं मगर इनके ..
टहलती रहती हैं दिल के हर कोने में
और झाडती रहतीं हैं राख ..
बहुत कुछ जलाने के बाद.
बिखरी बेचैनियों को
पकड़ कैसे सकोगे
बहुत फिसलन भरे होते हैं
बेचैनियों के हाथ
पाँव होते हैं मगर इनके ..
टहलती रहती हैं दिल के हर कोने में
और झाडती रहतीं हैं राख ..
बहुत कुछ जलाने के बाद.
लिखा हुआ मिटाने की
भरपूर कोशिश करती हैं ये
घिसने से निकली
रबड़ की बत्तियाँ
पड़ी रहती हैं यहाँ वहाँ
पर किस्मत का लेखा
मिटा कहाँ पातीं हैं कमबख्त !
भरपूर कोशिश करती हैं ये
घिसने से निकली
रबड़ की बत्तियाँ
पड़ी रहती हैं यहाँ वहाँ
पर किस्मत का लेखा
मिटा कहाँ पातीं हैं कमबख्त !