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मंगलवार, 5 जून 2012

रंगों का दरिया

 


















लड़की कस के पकड़ लेती 
उँगलियों  में अपना ब्रश 
सारे  गहरे रंग समेट ..
ब्रश  की नोक पर लगा लेती.
हवा में हाथ उठाती 
रंग छिड़कती ..कोशिश करती 
कुछ खींचने की ..कुछ आंकने की ..
आड़ी तिरछी लकीरों में घुले रंग 
कोई आकार लें..उससे  पहले 
लड़का अपने हाथ हवा में उठाता 
सारे रंग समेट लेता 
अपनी हथेलियों में ..
सिद्धहस्त जादूगर की तरह 
रंगों का दरिया वापस बहा देता....

क्षितिज  के एक कोने से दूसरे कोने तक
बिखर जाते रंग ...इन्द्रधनुष से 
कुछ देर दोनों जादू बुनते ....
पर रंग तो दिखाई देते हैं न रोशनी में ..
वो उठकर रोशनी का स्विच बंद करना चाहती 
पर उंगलियां फिर रंग में डूब जातीं ....

तब से उसने आँखें बंद की हुई हैं 
उसकी आँखों में बंद है एक इन्द्रधनुष ...
जबकि लड़के के हाथ 
अब भी उठे हैं ...
दुआएं बिखेर रहे हैं !





शनिवार, 2 जून 2012

पेशानी पर चाँद

 



















चाँद को बस एक बार
पेशानी पर सजाया था
उमर भर का दाग हो गया ...
माथे की लकीरों में भी
इक अगन उतर आयी है .

सबके लेखे में

कहाँ होती है चाँद की रोशनी...
सारे ग्रह-नक्षत्र सही राह चल भी दें
पर चाँद की फ़सल नहीं काट पाते.

किस्मत के सितारे जो रोपने हों

तो चाँद का सीना मत खोदना
कलेजे पर लगी चोट का
अंदाज़ा तो होगा ही तुम्हें...

टांग देना चाँद को

हथेलियों से गोल करके
आसमान के ब्लैक-बोर्ड पर
लाईट हाउस सा चमकेगा
तो सितारे किस्मत की राह
ढूंढ पायें शायद ...

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