कुछ वजहें जीने की
आस पास बिखेर रखी हैं
दिखती हैं, सुनाई देतीं हैं
तो लगता है ज़िंदा हूँ मैं .
सजा रखी हैं कुछ शोकेस में
सजावटी सामान की तरह
जैसे बेजान, बेवजह सी
खूबसूरत चीज़ें भी तो
होतीं हैं वजह जीने की .
कुछ रखी हैं बुकशेल्फ़ में
किताबों के पन्नों के बीच दबी
अक्षर अक्षर महकती सी ...
बेजान अक्षरों के मानी भी
होते हैं कभी कभी ..वजह जीने की .
कुछ को ओढती हूँ बिछाती हूँ
पहनती हूँ खाल के नीचे
मांस और लहू से चिपकी हैं वो
उतारने पर दर्द होता है असहनीय ..
इश्क़ एक बार पहन कर
उतारा नहीं जा सकता.
इश्क़ न हुआ,
कोई हरी बूटी हो गयी
मुश्किलों के सिलबट्टे पर पिसी
भरोसे की छन्नी में छनी
घुली हुई भंग की तरह
पीते रहो उम्र भर घूँट घूँट..
जीने का सामान ऐसा भी तो होता है .